जैन धर्म के प्रमुख तथ्य-
- जैन धर्म के सबसे पहले तीर्थंकर ऋषभदेव थे।
- महावीर स्वामी जैन धर्म के अंतिम (24वें) तीर्थंकर थे।
- जैन धर्म के त्रिरत्न हैं- सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण।
- त्रिरत्न के अनुशीलन में पाँच महाव्रतों का पालन जरूरी है – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य।
- जैन धर्म ईश्वर को नहीं मानता।
- जैन धर्म आत्मा को मानता है।
- जैन धर्म पुनर्जन्म और कर्मवाद को मानता है।
- जैन धर्म के सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम हैं – स्यादवाद तथा अनेकांतवाद।
- जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचार सांख्य दर्शन से लिए।
- मौर्योत्तर युग में जैन धर्म का एक प्रसिद्ध केंद्र मथुरा था। मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से है।
- 10 वी शताब्दी के मध्य में मैसूर के गंग वंश के मंत्री चामुंड के प्रोत्साहन के द्वारा कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में विशाल बाहुबली की मूर्ति (गोमतेश्वर की मूर्ति) बनाई गई।
- जैन धर्म को मानने वाले राजा और उनका योगदान
- उदायिन
- वंदराजा
- चंद्रगुप्त मौर्य
- कलिंग नरेश खारवेल
- राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष
- चंदेल शासक – खजुराहो में जैन मंदिर का निर्माण।
- जैन तीर्थंकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा लिखित कल्पसूत्र में मिलती है। कुछ प्रमुक तीर्थंकरों का विवरण निम्न है-
→ ऋषभदेव
- ये प्रथम जैन तीर्थंकर थे।
- इनका प्रतीक चिह्न साँड था।
- इनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
→ अजितनाथ
- ये द्वितीय जैन तीर्थंकर थे।
- इनका प्रतीक चिह्न हाथी था।
→ संभव
- ये तृतीय जैन तीर्थंकर थे।
- इनका प्रतीक चिह्न घोड़ा था।
→ संपार्श्व
- ये सातवें जैन तीर्थंकर थे।
- इनका प्रतीक चिह्न स्वास्तिक था।
→ शांति
- ये सोलहवें जैन तीर्थंकर थे।
- इनका प्रतीक चिह्न हिरण था।
→ नामि
- ये इक्कीसवें जैन तीर्थंकर थे।
- इनका प्रतीक चिह्न नीलकमल था।
→ अरिष्टनेमि
- ये बाईसवें जैन तीर्थंकर थे।
- इनका प्रतीक चिह्न शंख था।
- इनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
- इनको भगवान कृष्ण का निकट संबंधी माना जाता है।
→ पार्श्व
- ये तेईसवें जैन तीर्थंकर थे।
- इनका प्रतीक चिह्न सर्प था।
→ महावीर
- ये चौबीसवें जैन तीर्थंकर थे।
- इनका प्रतीक चिह्न सिंह था।
- जन्म – 540 ई0पू0 में बिहार के वैशाली के कुंडलग्राम में।
- बचपन का नाम – वर्द्धमान
- पिता – सिद्धार्थ (ज्ञातृक कुल के सरदार)
- माता – त्रिशिला (लिच्छवि राजा चेटक की बहन)
- पत्नी – यशोदा
- पुत्री – अनोज्जा प्रियदर्शनी
- 30 वर्ष की आयु में माता-पिता की मृत्यु के बाद बड़े भाई नंदिवर्धन से अनुमति लेकर संन्यास लिया।
- 12 वर्षों की तपस्या के बाद जृंभिक के पास ऋजुपालिका नदी के किनारे साल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य), निर्ग्रंथ (बंधनहीन) कहे गए।
- पहला उपदेश – प्राकृत (अर्धमागधी) भाषा में।
- प्रथम अनुयायी – जामिल (दामाद)।
- प्रथम जैन भिक्षुणी – नरेश दधिवाहन की पुत्री चंपा।
- अपने शिष्यों को 11 गणधरों में बाँट दिया।
- आर्य सुधर्मा अकेला गणधर था जो महावीर की मृत्यु के पश्चात जीवित रहा। यह जैन धर्म का पहला थेरा या मुख्य उपदेशक था।
- निर्वाण – 468 ई0पू0 बिहार के पावापुरी (राजगीर) में 72 वर्ष की आयु में।
- मल्लराज सृस्तीपाल के महल में महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ।
जैन धर्म का विभाजन
300 ई0पू0 के आसपास मगध में 12 वर्षों का आकाल पड़ा, जिसके कारण भद्रबाहु अपने शिष्यों को लेकर कर्नाटक चले गए। कुछ अनुयायी स्थूलभद्र के साथ मगध में रुक गए। जब भद्रबाहु लौटे तो मगध के साधुओं से मतभेद हो गया। इसके बाद जैन धर्म दो संप्रदायों में विभक्त हो गया –
- श्वेतांबर – स्थूलभद्र के शिष्य, श्वेत वस्त्र धारण करने वाले
- दिगंबर – भद्रबाहु के शिष्य, नग्न रहने वाले
जैन संगतियाँ
- प्रथम –
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- समय – 300 ई0पू0 में
- स्थान – पटलीपुत्र में
- अध्यक्ष – स्थूलभद्र
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- द्वितीय –
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- समय – 6ठी शताब्दी में
- स्थान – बल्लभी (गुजरात) में
- अध्यक्ष – क्षमाश्रवण
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