शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है। शिवलिंग की भक्ति का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा अवशेषों से मिलता है। शिव के लिए ऋग्वेद में रुद्र नामक देवता का उल्लेख आता है। अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है। लिंगपूजा का पहला स्पष्ट उल्लेख मत्स्यपुराण में मिलता है। महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग पूजा का वर्णन मिलता है। शैवधर्म दक्षिण भारत में चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा। नायनार संतों की संख्या 63 बताई गई है। जिनमें तिरूज्ञान, उप्पार, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम उल्लेखनीय है. नायनारों ने पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रसार किया। ऐलेरा के कैलाश मदिंर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया। चोल शालक राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था। कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिंव और नंदी का एक साथ अंकन मिलता है। शैव साधुओं को अवधूत, योगी, नाथ, अघोरी, बाबा, ओघड़, सिद्ध कहा जाता है।
शिव के अवतार – शिव पुराण में शिव के दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है. ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं: महाकाल, तारा, भव, भुवनेश, षोडश, भैरव, धूम्रवान, छिन्नमस्तक गिरिजा, बगलामुखी, शम्भ, चण्ड।
शैव ग्रंथ –
- श्वेताश्वतरा उपनिषद
- शिव पुराण
- आगम ग्रंथ
- तिरुमुराई
शैव सम्प्रदाय के संस्कार –
- शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं.
- इसके संन्यासी जटा रखते हैं.
- इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते
- इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं.
- इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं.
- यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं.
- शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं
- शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है.
- शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां सिर्फ शिवलिंग होता है.
- यह भभूति तीलक आड़ा लगाते हैं.
शैव संप्रदाय – वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई है
- पाशुपत – पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है, इसके संस्थापक लकुलीश थे. जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है। पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया, इस मत का सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है।
- कापालिक – कापालिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे, इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र शैल नामक स्थान था।
- कालमुख – कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है. इस संप्रदाय के लोग नर-पकाल में ही भोजन, जल और सरापान करते थे और शरीर पर चिता की की भस्म मलते थे.
- लिंगायत – लिंगायत समुदाय दक्षिण में काफी प्रचलित था. इन्हें जंगम बी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना करते थे. बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक उल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय भी कहा जाता था।
- दसवीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ।
शैव तीर्थ – अमरनाथ, कैलाश मानसरोवर, केदारनाथ, सोमनाथ, रामेश्वरम , बनारस, चिदम्बरम।